बिहार की नीतीश सरकार एक नए आदेश को लेकर चर्चा में है. बिहार में कोई व्यक्ति अगर विधि-व्यवस्था की स्थिति, विरोध प्रदर्शन, सड़क जाम जैसे मामलों में शामिल रहता है और उसके खिलाफ पुलिस चार्जशीट दायर होती है तो उसकी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. उस व्यक्ति को ना तो सरकारी नौकरी मिलेगी और ना ही कोई सरकारी ठेका.
ना सरकारी नौकरी और ना ही कोई सरकारी ठेका मिलेगा
दरअसल, हाल ही में बिहार सरकार से जुड़े ठेके में चरित्र प्रमाण पत्र अनिवार्य किए जाने के बाद डीजीपी एसके सिंघल ने पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट के संबंध में मंगलवार को एक विस्तृत आदेश जारी किया है. गृह विभाग के आदेश के आलोक में पुलिस मुख्यालय ने आदेश जारी कर पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट को लेकर जिला पुलिस की ओर से की जाने वाली कार्रवाई को स्पष्ट किया है. उसमें ही उपरोक्त बातें लिखी हुईं हैं.
धरना-प्रदर्शन करने पर नहीं मिलेगी नौकरी
आदेश में किन-किन मामलों में चरित्र सत्यापन की जरूरत होगी है. इसे भी स्पष्ट कर दिया गया है. मुख्यालय ने आदेश में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति किसी विधि-व्यवस्था की स्थिति, विरोध प्रदर्शन, सड़क जाम आदि मामलों में शामिल होकर किसी आपराधिक कृत्य में शामिल होता है और उसे इस कार्य के लिए पुलिस द्वारा आरोपपत्र या चार्जशीट दायर किया जाता है तो इस संबंध में पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट में साफ रूप से लिया जायेगा. ऐसे व्यक्तियों को गंभीर परिणामों के लिए तैयार रखना होगा और उसे सरकारी नौकरी, सरकारी ठेका आदि नहीं मिल पायेंगे.
ठेका लेने पर भी होना चरित्र सत्यापन
दरअसल, बीते 25 जनवरी को गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव ने डीजीपी और सभी विभागों के साथ मंडलीय आयुक्त और डीएम को पत्र जारी कर कहा था कि विभिन्न सरकारी विभागों, निगमों, निकायों में संविदा या ठेका पर काम लेने के लिए चरित्र सत्यापन की अनिवार्यता होगी. इसके बाद पुलिस मुख्यालय ने साफ किया कि नौ मामलों में पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट की आवश्यकता है. मंगलवार को पुलिस मुख्यालय ने विस्तृत आदेश जारी किया.
FIR में नाम होने से किसी का चरित्र नहीं बिगाड़ सकती पुलिस
पुलिस मुख्यालय ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति के संबंध में पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट अत्यंत ही संवेदनशील दस्तावेज है. आवेदक को परेशान किये बगैर सही-सही तैयार किया जाना आवश्यक है. आदेश में कहा गया है कि संज्ञेय अपराधों के संबंध में यदि कोई व्यक्ति प्राथमिक या अप्राथमिकी अभियुक्त रहा हो, लेकिन जांच के बाद आरोपपत्रित नहीं किया गया हो तो सत्यापन प्रतिवेदन में कोई टिप्पणी नहीं की जायेगी. साथ ही संदिग्ध घोषित किये गये व्यक्ति पर भी टिप्पणी नहीं की जायेगी. मतलब साफ है कि पुलिस केवल एफआइआर में नाम होने से किसी का चरित्र नहीं बिगाड़ पायेगी.