समझा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलिजियम ने बंबई हाई कोर्ट की अतिरिक्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति पुष्पा वीरेंद्र गनेडीवाला की स्थायी न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के प्रस्ताव की मंजूरी को यौन उत्पीड़न के कुछ मामलों में उनके विवादास्पद फैसलों के बाद वापस ले लिया है. सूत्रों के मुताबिक यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत यौन हमले की उनकी व्याख्या पर हुई आलोचनाओं के बाद यह फैसला लिया गया है.
न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने एक नाबालिग के वक्षस्थल को छूने के आरोपी को पिछले दिनों बरी कर दिया था और कहा था कि आरोपी ने त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं किया था. इससे कुछ दिन पहले उन्होंने व्यवस्था दी थी कि पांच साल की लड़की के हाथों को पकड़ना और ट्राउजर की जिप खोलना पॉक्सो कानून के तहत यौन अपराध नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल की इस दलील के बाद बंबई हाई कोर्ट के आदेश पर 27 जनवरी को रोक लगा दी थी कि इस फैसले से खतरनाक नजीर बन जाएगी.
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाले कॉलिजियम ने 20 जनवरी को न्यायमूर्ति गनेडीवाला को स्थायी न्यायाधीश बनाने के प्रस्ताव पर मुहर लगाई थी. इस महीने दो अन्य फैसलों में न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने नाबालिग बच्चियों से बलात्कार के आरोपी दो लोगों को बरी कर दिया था और कहा था कि पीड़ितों की गवाही आरोपियों पर आपराधिक जवाबदेही तय करने का भरोसा पैदा नहीं करती.
न्यायमूर्ति गनेडीवाला का जन्म महाराष्ट्र में अमरावती जिले के परतवाडा में तीन मार्च, 1969 को हुआ था. वे अनेक बैंकों और बीमा कंपनियों के पैनल में वकील रही थीं. उन्हें 2007 में जिला न्यायाधीश के तौर पर सीधे नियुक्त किया गया था और 13 फरवरी, 2019 को बंबई हाई कोर्ट की अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर प्रोन्नत किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय कॉलिजियम में मुख्य न्यायाधीश के साथ ही न्यायमूर्ति एनवी रमन और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन भी शामिल हैं.